Wednesday, 8 June 2016

उपन्यास :--गुफा वाला ख़ज़ाना (अंक:-3)

गुफा वाला ख़ज़ाना 
            अंक :-3
उस औरत के पास खड़ी चिली को, अब इतना तो पूर्ण विश्वास हो चुका था कि , वो चीख जैसी आवाज़े इसी औरत कि थी। क्योंकि उसे वापस  बहुत  देर 
से ऐसी चीख भरी आवाज़ नहीं सुनाई दी। जैसी उसने पूर्व में दो तीन बार सुनी थी।

कुछ देर तक चिली, उस मृत औरत के पास अनमनी सी मुद्रा में बैठी रही।सहसा उसकी नज़र उस औरत के हाथ की तरफ़ गई।

चिली को उस औरत के हाथ में दबा हुआ एक कागज़ का टुकड़ा दिखाई दिया। उसने  वो कागज़ की टुकड़ा , उसके हाथ से निकाला , तथा उसे गौर से देखा।
यह समेटा हुआ कागज़ , एक पत्र था। तथा  उसमें किसी मंदिर का नक्शा भी लिपटा हुआ था।

चिली ने अपनी सरसरी नज़र उस पत्र पर डाली , और चंद्रमा की श्वेत चाँदनी में उसे पढ़ना प्रारंभ किया। पत्र कुछ इस प्रकार था।

         "दूर मानसी पर्वत के पीछे, एक गाँव हैं, जिसका नाम हैं,  "शीतलापुर" 
उस गाँव से थोड़ा आगे चलने पर "विशाल शिवाली का जंगल" आता हैं।
इसी जंगल में एक प्राचीन काल का बना "भगवान विश्वेश्वर महादेव" का मंदिर हैं। जहाँ बरसों पुराना एक  खजाना गुफा के अंदर एक कमरें में रखा हुआ हैं।
इस खजाने को  कोई  भी तब तक नहीं पा सकता जब तक की वो इस रहस्यमयी गुफा के अंदर बने उस खजाने के कमरे का नक्शा ना ढूँढ़ लें।
यह नक्शा मंदिर में ही कहीं छिपा हैं।
यदि कोई इस खजाने को पाना चाहता हैं तो उसे हर हालत में इसे ढूँढ़ना पड़ेगा।गुफा से उस ख़ज़ाने को पाने के लिए केवल वहीं चंद्रग्रहण की रात  होनी चाहिए, जब पूर्ण चंद्रग्रहण हो, और यदि रात के बारह बजे से पूर्व उस गुफा से बाहर  निकलना  नहीं हुआ, तो उस रहस्यमयी गुफा में ही बंद हो जाओगे"

चिली पत्र को पढ़कर आश्चर्यचकित रह गयी। हालाँकि पत्र में सबसे नीचे दो बड़े स्वास्तिक भी चित्रित थे।जिसका आशय चिली नहीं समझ पायी।

अब चिली ने अपनी आँखें नक्शे की तरफ़ डाली।उसने नक्शा ज़मीन पर रखा , तथा बड़े ही इत्मीनान से उसे देखा।

"ओह ! तो अब मेरी  समझ में आया की वो औरत इस भयानक जंगल में क्या करने आयी थी"

चिली को अब अपने उन सभी प्रश्नों के उत्तर स्वत: ही मिल गये , जो उसने पूर्व में सोचे थे।
वो औरत  रास्ता नहीं भटकी थी, बल्कि इसी खजाने को पाने के लिए जा रही थी। मगर  दुर्भाग्य से इन जंगली जानवरों ने , उसे अपना ख़ज़ाना बना लिया।

अभी चिली नक्शे को देखते हुए , यह सब सोच ही रही थी कि उसे ख्याल आया।

अरे ! आज द्वादशी की रात  हैं । और कल  त्रयोदशी की रात ।यानी  पूर्ण ग्रहण वाली पूर्णिमा की रात में अभी भी तीन दिन का समय  हैं। क्या ही यह अच्छा हो कि मैं इस खजाने को ढूँढ़ने जाऊँ "

चिली को ग्रहण के बारे में यह सब इसलिए पता हैं।क्योंकि उसकी माँ ने उसे कल ही उसे यह सब बताया था । जब उसने अपनी भूगोल की पुस्तक के ग्रहण वाले पाठ के बारें  में अपनी माँ  से  पूछा था।

अनायास ही आये इस खजाने को पाने के विचार ने चिली को आपादमस्तक झकझोर कर रख दिया। उसका पिछला सारा डर अब उत्साह में बदल गया।
              चिली अब तक भी उस खजाने के बारें में ही सोच रही थी।
     उसने एक बार फिर नक्शे को देखा।

  नक्शे के हिसाब से उसने पाया की मानसी पर्वत कुछ ही दूर  बस नदी पार करने पर  उसके सामने होगा।

    "शायद इस वक्त चार बज चुके होंगे। अब यदि मैं लगातार चलती रही तो, अवश्य ही सूर्योदय तक मानसी पर्वत की चढ़ाई पूरी कर सकती हूँ"
     
   तो साथियों इस प्रकार  यहाँ से शुरुआत होती हैं, चिली की एक ऐसी अद्भुत यात्रा कि , जहाँ कदम - कदम पर मुश्किलें उसके सामने सीना ताने खड़ी होंगी।

उत्साह से लबरेज चिली निकल पड़ी अपने स्वर्णिम अभियान पर।

कई देर यूँ ही चलते -चलते वो अब नदी के पास आ पहुँची।पर आगे नदी की पेटा उसे कुछ ज्यादा ही गहरा लगा।अभी तक  चुकि: हल्का -हल्का अंधेरा भी था, तो ऐसे में चिली ने अपनी जान को जोखिम में डालकर  इस गहराई में नदी पार करना सर्वथा अनुचित समझा।

"अब मैं क्या करूँ ? मुझे कैसे भी करके जल्दी से जल्दी इस नदी को पार करना होगा"

"हाँ शायद यहाँ आसपास कोई नाव हो सकती हैं।क्योंकि  मुसाफिरों को नदी पार करवाने के लिए नावों का प्रयोग तो होता ही होगा।आख़िर कैसे न कैसे तो लोग यहाँ से नदी पार करते ही होंगे"
चिली  इसी उम्मीद में कि शायद आगे कोई नाव मिल जाएगी आगे बढ़ने लगी। उसका अनुमान बिल्कुल सही निकला।संयोगवश थोड़ा ही आगे जाने पर उसे एक टूटी हुई पुरानी नाव दिख पड़ी।

"शुक्र हैं भगवान का की यहाँ नाव पड़ी हैं।मगर यह तो टूटी हैं। कहीं ऐसा ना हो मैं बीच नदी में ही डूब जाऊँ"
               चलो अब जो भी हो , पर में इतनी आसानी से हार नहीं मान सकती । मुझे  शीघ्रातीशीघ्र नदी पार कर उस तरफ़ निकलना  होगा"

चिली ने उस जर्जर नाव को थोड़ा दुरस्त किया, तथा  उसमें सवार होकर नदी के इस पार आ पहुँची।
  इस बाधा को पार कर लेने पर  उसकी ख़ुशी दोगुनी हो गई।वह आनंदित हो ज़ोर -ज़ोर से उछलने लगी।

चिली पूरे जोश के साथ अब मानसी पर्वत की तरफ़ बढ़े जा रही थी।

लगभग एक घंटा हो गया चिली को नदी पार किए हुए, उसने अब तक कहीं भी विश्राम नहीं लिया। 
इधर  प्रात:काल की वेला में पक्षीयों की मधुर कोलाहल ध्वनि उसे अतिप्रिय लग रही थी। हालाँकि चिली को अभी तक सूर्योदय के दर्शन नहीं हुए थे।

"शुक्र हैं जैसे तैसे ये डरावनी रात बीत गई" चिली ने एक संतोषप्रद साँस ली।
      
   पर वो कौन था जिसने रात को मेरा पीछा किया ? 
चिली के लिए यह प्रश्न अब भी एक पहेली ही बना हुआ था । जिसे वो चाह कर भी नहीं सुलझा पा रही थी।

अब मानसी पर्वत ठीक उसके सामने था।चिली नें अपना पुरा दमखम लगाते हुए , उसकी चढ़ाई शुरू की।
मानसी पर्वत की चढ़ाई घुमावदार ना होकर सीधी चढ़ाई  थी, लिहाजा चिली को चढ़ने में बड़ी परेशानी हो रही थी।

"बाप रे ! लगता हैं कि यहाँ से फिसलने पर निस्संदेह हड्डियों का कचूमर निकल जाएगा"

चिली अब तक आधी चढ़ाई कर चुकी थी। अब हल्की -हल्की अरूणोदय की ताम्र लालिमा पूर्व में चमकने लगी।

सहसा उसे सामने  से एक साँप उसकी ही  तरफ़  आता हुआ दिखाई दिया। चिली ने जल्दबाज़ी में भागने की सोची पर यकायक उसका सिर इस जल्दबाजी में एक बलूत के पेड़ से जा टकराया।
"आह ! बचाओ ! चिली मदद के लिए जोर - ज़ोर से चिल्लाने लगी।

पर वहाँ कोई हो तो बचाने आये।
चिली फिसलते फिसलते सिरदर्द के कारण  बेहोश हो गई।

जब बहुत देर बाद चिली को होश आया ,  तो उसने , अपने आप को एक चट्टान की आड़ में लेटा पाया।

उसने देखा कि उसके कपड़े  कई जगहों से फट चुके थे। कोहनी तथा दोनों घुटनों से खून बह रहा था।
एक घुटना कुछ ज्यादा ही जख्मी हो गया था।

"शुक्र हे भगवान का कि मैं अभी तक ज़िंदा हूँ। अगर यह चट्टान ना होती तो शायद  अब तक चील , कौए  मेरे  शरीर से अपनी पेट पूजा कर रहे होते"
अब मुझे वापस इतनी चढ़ाई करनी पड़ेगी। चिली इसी सोच में व्यथित थी।
चिली का पूरा बदन पसीने से तर-बतर हो चुका था। उसे ऐसा लग रहा था मानों उसकी सारी शक्ति क्षीण हो चुकी हो ।

"नहीं मुझे हिम्मत नहीं हारनी चाहिए" चिली ने भगवान भोलेनाथ का जयकारा लगाया और अपनी पूरी ताक़त  लगाते हुए खड़ी होने का प्रयास किया , इसमें वो कामयाब  रहीं।

जब उसने उठकर देखा,  तो उसने पाया कि वो इतनी भी ज्यादा दूर नहीं लुढकी हैं।
अब एक बार चिली पुन: मानसी पर्वत की चढ़ाई करने लगी।
उसके घुटनों में सूजन आ गई थी। अत: उसे चढ़ने में तकलीफ़ हो रही थी। पर उसने अपने अदम्य साहस से अंतत: मानसी पर्वत की चढ़ाई  पूरी की।

मानसी पर्वत पर  अब सूर्य का प्रकाश पूर्ण रूप से चमक रहा था।मानो पर्वत शिखर की लताएँ , कन्दराएँ, भगवान सूर्य देव की सुनहली रश्मियों का हृदय से  स्वागत  कर रही हो।तथा प्रभु दिनकर रात की सारी तंद्रालस पल्लवों से मिटाकर मानों उनमें नूतन प्राण संचार कर रहे हो।

चिली ने नक्शे के मुताबिक़ अपनी पहली बाधा पार कर ली थी। और इस विजय में वो अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानते हुए ख़ुश हो उठी।

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