Monday 2 May 2016

उपन्यास:-गुफा वाला ख़ज़ाना -अंक 2


अब तक काफ़ी रात बीत चुकी थी।
और  चंद्रमा भी, अब अपने पूर्ण वेग से उस निर्जन वन को अपनी शीतलता प्रदान कर रहा था।

         "इस समय कितनी बजी होगी ?
चिली ने स्वयं से प्रश्न किया।

    "शायद रात के बारह बज चुके होंगे" जैसा कि माँ बताती हैं। कि आधी रात में चंद्रमा अपनी पूरी चाँदनी के साथ चमकता हैं।
अचानक आई इस माँ की बात ने चिली को अपने घर की याद दिला दी। उसे अपने माँ-पिताजी के परेशान होने के अनेक ख्याल दिमाग़ में आने लगे।दिन भर की वो सारी घटनाएँ अब चिली के मानस पटल पर घूमने लगी ,जो चिली के साथ घटी थी।

   चिली को वो सब बातें याद आने लगी कि , कैसे चिली अपनी सहेलियों झुमरी, सुमेना और सुरीली के साथ खेल रही थी। उसे वो वाकया अब भी याद हैं , जब उसे आज कक्षा  में एक कविता सुनानी पड़ी थी।
और आज तो उसने अपनी गुड़िया के लिए नये कपड़े भी सिले थे।प्रमिला का घोड़ा , कैसे आज ठुमक-ठुमक कर नाच रहा था। और हाँ  वो बाँके मोहन की भैंस भी तो आज गुम गई थी।

"कहीं मैं भी गुम तो नहीं हो जाऊँगी" 
नहीं ! मैं तो बहादुर लड़की हूँ।
          
       चिली अभी यह सब सोच ही रही थी , कि उसे अचानक फिर से वो आवाज़ सुनाई दी। जो अब इस शांत वातावरण में  और तेज सुनाई पड़ रही थी।
        चिली एक बार पुन: उस आवाज़ का पता लगाने , आगे चल पड़ी।

उसे एक बार फिर से  महसूस हुआ कि कोई है ,जो अभी भी उसका पीछा किए जा रहा हैं।चिली ने डर के मारे , अपने कदम तेजी से बढ़ा दिए।  इस घबराहट के मारे उसके होंठ सूखने लग गए।

अब वो पेड़ों की झुरमुट से निकलकर एक खुले क्षेत्र में आ पहुँची
जहाँ सुजला नदी अपने शांत प्रवाह से बह रही थी, तथा चंद्रमा की धवल चाँदनी उसकी शोभा में चार चाँद लगा रही थी।
चिली ने नदी में  हाथ-पैर धोए , पानी पीया , तथा कुछ देर विश्राम करके पुन: आगे चल पड़ी।

चिली को  फिर से महसूस हुआ कि , कोई है जो अब भी उसका पीछा किये जा रहा हैं।
पर यह हैं कौन ? चिली इसका पता नहीं लगा पा रही थी।
उसने अब दौड़ना शुरू कर दिया । पर यह क्या ?
अब तक तो उसे सिर्फ़ ये ही महसूस हो रहा था कि,  जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हैं।पर अब तो उसे कुछ अजीबो ग़रीब आवाज़े भी सुनाई पड़ने लग गई।

"यह आवाज़ तो किसी छन- छन से बजते घुँघरू की आ रही हैं "।चिली ने क्षणिक ख़ामोश होकर सोचा ।

जंगल में अकेली चिली का कलेजा, मारे डर के धक-धक  कर रहा था।
आगे रास्ता बंद हो जाने के कारण, चिली को एक बार फिर से घने जंगल में  ही दाख़िल होना पड़ा।

इस समय रात के लगभग दो बजने को थे ।चिली रात की इस तन्हाई में चुपचाप भयावह जंगल में आगे बढ़े जा रही थी।

चिली का गाँव "पंचपुर "चारों और पहाड़ियों से गिरा हुआ , लगभग 40 -50 घरों वाला गाँव हैं।
यहाँ के अधिकांश लोगों का मुख्य पेशा , जंगल से लकड़ी काटना हैं। चिली के पिता भी गाँव के एक प्रमुख लकड़हारे हैं।गाँव में पशुपालन भी किया जाता हैं।जिसकी देखभाल का मुख्य जिम्मा घर की औरतों पर था।

बच्चे  इन पशुओं को चराने के लिए, जंगलों के आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में जाया करते हैं।किसी  को भी घने  जंगल में प्रवेश की अनुमति नहीं थी।हाँ कभी कभार दिन में , अपने खोए हुए  पशुओं को ढूँढ़ने वो नदी तक ज़रूर  आ जाते थे।

चिली को नदी तक का रास्ता तो कुछ-कुछ याद था ,पर अब आगे का रास्ता उसके लिए पूर्णतया अनजान ही था।

"अब मैं क्या करूँ ? आगे का रास्ता तो मुझे मालूम  भी नहीं हैं। और  इतनी रात गये इस प्रकार जंगल में  अकेले भटकना क्या यह उचित होगा ?

नहीं ! मैं अब इस तरह बिना पता लगाए  खाली हाथ नहीं लौट सकती " मैं अवश्य पता लगाकर ही दम लूँगी"

इस प्रकार दृढ़ निश्चय कर चिली एक बार फिर से उस आवाज़ का पता लगाने चल पड़ी।

उसे चलते हुए अब तक क़रीब आधा घंटा हो चुका था । ज्यों - ज्यों चिली इस जंगल में  आगे बढ़ रही थी , त्यों -त्यों उसके लिए ख़तरा बढ़ता ही जा रहा था।
सहसा चिली को सामने से किसी के आने की आहट सुनाई दी। यह एक जंगली हाथी था। जो एक  सुअर का पीछा करते हुए  इधर ही आ रहा था ।
       चिली का गला डर के मारे सूखने लग गया। उसके पूरे बदन में ,इस दृश्य ने कम्पकम्पी उत्पन्न कर दी। जब यह मामला शांत हुआ, तब कहीं जाकर उसकी जान में जान आई।

"आख़िर वो रहस्यमयी आवाज़ किसकी हो सकती हैं  ?  मैने ऐसी भयानक आवाज़ पहले तो इन जंगलों में कभी नहीं सुनी।

मुझे लगता हैं यह किसी के चीखने की आवाज़ हैं।
शायद  इंसानो जैसी ।
"पर इस खौफनाक जंगल में भला इतनी रात गये कौन हो सकता हैं।
    कहीं  मेरे साथ कोई छल तो नहीं हो रहा हैं ?

चिली के लिए यह प्रश्न निरंतर उलझन पैदा कर रहा था , कि वो रहस्यमयी आवाज़ आख़िर  हैं  किसकी ?
और इधर छन -छन की आवाज़ भी उसके डर को और बढ़ा रही थी।

"कहीं ये किसी भूत या प्रेतात्मा का कोई छल तो नहीं हैं ? क्योंकि यदि ये आवाज़ किसी इंसान की होती तो वो अब तक उसे मिला क्यों नहीं ?

"पर मास्टर जी  तो कहते  हैं  कि भूत-प्रेत कुछ भी नहीं होता हैं"

"पर क्या सचमुच में भूत -प्रेत नहीं होते हैं ?  फिर उस दिन हरिया की बहन ये क्यों कह रही थी कि , कैसे अचानक रात में  उसका बछड़ा ग़ायब  हो गया था, 
और सुबह जब लोगों नें एक तांत्रिक  से पूँछा तो उसने बरगद वाले भूत द्वारा पकड़े जाने की बात कही।
        इस ऊहापोह की स्थिति से चिली परेशान हो उठी। उसका बाल मन कल्पना की ऊँची-ऊँची उड़ान भरने लग गया।
चिली इस रहस्यमयी आवाज़ के  बारें में विचित्र कल्पनाएँ करती हुई आगे बढ़ रही थी।उसकी यह स्थिति तब तक ऐसी ही बनी रही, जब तक की अगले संकट से उसका सामना नहीं हुआ ।
चिली का यह अगला संकट था ही बड़ा डरावना, क्योंकि उसें आगे जो कुछ भी  दिखाई दिया ,वो हर किसी को भी इस स्थिति से गुजरने में विवश कर सकता हैं। दरअसल चिली को ज़मीन पर एक  लेटी हुई एक मानवाकृति दिखाई दी। चिली  धीरे -धीरे उस मानवाकृति के क़रीब गई । जब वो उसके क़रीब पहुँची  तो वहाँ का मंजर देखकर उसका चेहरा डर के मारे सफ़ेद पड़ गया।उसकी आवाज़ मानो गले में ही अटक गई ।
यह एक औरत थी ।जो औंधे मुँह ज़मीन पर लेटी हुई थी।

"कहीं यह चुड़ैल या प्रेत आत्मा तो नहीं ?
हो सकता है कि यह मेरे साथ इतनी देर से छल कर रही हो। और मुझे मारना चाहती हो ?
क्योंकि कभी-कभी प्रेत आत्माएँ किसी को मारने के लिए , इस प्रकार के छल करती हैं। ऐसा मेरी सहेलियाँ भी बताती हैं"
  
चिली ने पास के ही एक पेड़ के पीछे छिपकर यह सब शांति से समझने का प्रयास किया।
वो कुछ  देर तक उस औरत के उठने के इंतज़ार में  पेड़  के पीछे ही छिपी रही। पर जब बहुत देर तक उसे वो औरत हिलती डुलती सी प्रतीत नहीं हुई , तो उसने साहस बटोरकर उस औरत के पास जाने का निश्चय किया।
"मुझे इसके पास चलकर देखना चाहिए " कही यह बेहोश तो नहीं हो गयी ?
इस प्रकार का विचार कर चिली उस औरत के पास आ गई, और उसने उसे उठाने का प्रयास किया ।मगर वो औरत टस से मस नहीं हुई।
थक हार कर चिली ने उसके शरीर को , जो अब तक उल्टा पड़ा था। सही करने का प्रयास किया ।मगर जब उसने उसे सही किया तो डर के मारे उसकी घिग्गी बँध गई।उसके चेहरे की हवाईयाँ उड़ गई । चिली का पूरा बदन पसीने से तर - बतर  हो गया।
वो औरत मर चुकी थी। चिली ने किसी इंसान की ऐसी मौत पहले कभी नहीं देखी थी। उस औरत का पुरा जिस्म लहूलुहान था।उसका चेहरा तथा गला , जंगली जानवरों के नाखूनों से नोचा हुआ था। उस औरत के सिर से खून निकला हुआ था।

ओह ! जंगल के खूंखार जानवरों ने इसकी क्या दशा बना दी ? कहीं मेरी भी………… आगे बोलते बोलते चिली कि ज़बान अटक गई।उसने  कतई ये नहीं सोचा था की, इस बियाबान में उसकी ऐसी दशा होने वाली हैं।

"अच्छा तो अब समझ में आया। कि वो आवाज़, जो मैंने कई बार सुनी । वो  इसी औरत की थी"
"पर यह इतनी रात गये आख़िर यहाँ कर क्या रही हैं ? और ये है  कौन ?
यहाँ इस भयानक जंगल में क्या करने आयी थी ?
"कहीं  ये  रास्ता तो नहीं भटक गई थी ? चिली ने अपने स्वप्न सागर में गोते लगाकर ऐसे कई प्रश्न उत्पन्न कर लिए।
मगर उसे वहाँ अपने इन अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई नहीं दिखा । थी तो केवल  चंद्रमा की धवल चाँदनी , और आस - पास की पेड़ लताएँ, जो किसी भी सूरत में उसके इन प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ थी।

(मित्रों यह था उपन्यास का दूसरा अंक , जारी रहेगी यह रहस्य  और रोमांच से भरी यात्रा बस बने रहिए मेरे साथ इस रोचक सफ़र में । यह अंक आपको कैसा लगा मुझे ज़रूर लिख भेजें , आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा मिलते हैं फिर से अगले अंक में तब तक के लिए "वंदेमातरम्"

आपका प्यारा साथी:-अनमोल तिवारी 
"कान्हा"
गाँव -कपासन जिला ,चित्तौडगढ (राज)
संपर्क :-9694231040
                   &
           8955095189
ई मेल :-Anmoltiwari38@gmail.com

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उपन्यास :-गुफा वाला ख़ज़ाना अंक -1

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                  ।।श्री।।
ऊँ वक्रतुण्डं महाकाय,
              सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्न कुरु मे देवे
              सर्व कार्यषु सर्वदा।।
    
        ***गुफा वाला ख़ज़ाना****

लेखक की कलम से………………
    प्रस्तुत बाल उपन्यास" गुफा वाला ख़ज़ाना " एक रोचकीय , एवं रोमांचकारी उपन्यास हैं।
यह एक  14 वर्षीय मासूम लड़की "चिली"की कहानी हैं। जो अचानक आयी एक आवाज़ को सुनकर, विस्मित सी हो जाती है। तथा आवाज़ किसकी हैं।यह पता लगाने के लिए, जंगल में पहुँच जाती हैं।

वहाँ उसे एक औरत का ,मृत शरीर दिखाई पड़ता हैं ।सहमी सी चिली नज़दीक जाकर देखती हैं।उसके हाथ में एक नक्शा , तथा पत्र था । जिसमें एक खजाने का रहस्य था।

आगे क्या होता हैं ?, तथा चिली किन -किन मुसीबतों का सामना करते हुए वहाँ पहुँचती हैं? क्या उसे ख़ज़ाना मिलता हैं ?
इन प्रश्नों के उत्तर तो आप उपन्यास पढ़कर ही जान पाएँगे।
पर इतना तो स्पष्ट हैं , कि यह उपन्यास एक आश्चर्यजनक एवं साहसिक यात्रा का अनुपम उदाहरण हैं।

मेरे  इस उपन्यास में बस यही उद्देश्य निहित हैं कि बाल मन इस उपन्यास से साहस की प्रेरणा पाकर निश्चय ही उत्तम सोच विकसित कर सकेंगे 
             मैं अपने इस उद्देश्य में कितना सफल हो पाया , यह तो आप प्रबुद्ध पाठक ही समझ  पाएँगे।फिर भी भूलवश और वर्तनीगत  हुई त्रुटियों  के लिए में सादर क्षमाप्रार्थी हूँ।

""इस  उपन्यास  की विषयवस्तु पूर्णतया काल्पनिक है । और इसका किसी भी घटना से कोई संबंध नहीं हैं। फिर भी अगर  संबंध पाया जाता हैं, तो यह संयोग मात्र ही माना जाएगा""।

आप पाठकों के सुझावों का सहृदय  स्वागत हैं।आप श्री इसे ज़रूर पसंद करेंगे , इसी आशा में 
आपका अनुज
        •• अनमोल तिवारी"कान्हा"••
---------------------------------------------------------------------------           गुफा वाला ख़ज़ाना 
                 (अंक:-1) 
साँय का समय, हवा अपने मंद प्रवाह से उस शांत वातावरण  में अनुगमन कर रही थी।जहाँ नन्ही सी "चिली " रोज़ की भाँति अपनी सहेलियों के साथ , गाँव में पीपल के वृक्ष तले, अपने स्वर्णिम बचपन के सावन में खेलेने में व्यस्त  हैं।

"चिली" को अभी तक यह डर  नहीं  हैं कि , उसे फिर से विद्यालय में गृहकार्य पुरा ना होने पर डाँट खानी पड़ सकती हैं। जैसी कि कल उसकी प्यारी सखी सुरीली को पड़ी थी।
सुरीली चिली की सबसे प्यारी सखी  हैं ।और दोनों एक ही कक्षा में  पढ़ती हैं।
चिली अपनी बाल सखियों के साथ, अभी तक खेलने में व्यस्त हैं।अब जबकि  अस्ताचलगामी  सूर्य का प्रकाश  धीरे -धीरे विलुप्त होने की कगार पर हैं।चिली की सब सहेलियाँ एक - एक करके वहाँ से खिसकने लगी ।
चिली और सुरीली ने जब देखा कि उनकी सब सखियाँ जा चुकी हैं ,तो उन्होंने भी  घर चलने का निश्चय किया और शैने:-शैने: अपने  क़दमों को बढाती हुई दोनों पुराने शिव मंदिर तक आ पहुँची।

अभी वो कुछ कदम और आगे चली ही  होंगी कि  अचानक उनकी एकाग्रता भंग हुई।जब उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। जो पास के ही जंगल से आ रही थी।जहाँ वो दोनों कभी-कभी अपने पिताजी के साथ जाया करती थीं।और लकड़ियों के  गट्ठर  लाया करती थीं।

चिली जिसकी उम्र अभी चौदह बरस ही होगी साँवला सलौना रूप , नटखट हँसी से लिप्त मासूम चेहरा, बिल्कुल अपनी माँ से मिलती शक्ल जो वीरता और साहस की कहानियाँ अक्सर चिली को सुनाया करती थी।

"चिली यह आवाज़ किसकी हो सकती  ? सुरीली ने क्षण भर के लिए  गंभीर हो लम्बी सी साँस छोड़ते हुए पूँछा "

"मुझे लगता है यह बेचार किसी जंगली जानवर की आवाज़ हैं। जो शायद किसी शिकारी के चंगुल में फँस गया हैं"
चिली ने प्रत्युत्तर में कहा और सुरीली की और देखने लग गई।

अब तक दोनों चलते-चलते सुरीली के घर तक पहुँच गई । चिली सुरीली से विदा हो , अपने घर की तरफ़ बढ़ने लगी कि अचानक उसे वो  आवाज़ फिर से सुनाई दी। जो उसने पहले सुनी थी।
चिली ने जब दोबारा उस आवाज़ को सुना, तो उसने निश्चय किया कि ,वो इस आवाज़ का पता लगाएगी।और उसने अपने कदम वापस जंगल की तरफ़ जाने रास्ते की और मोड़ लिए।

अपने गाँव से बाहर निकलकर चिली उस रहस्यमयी आवाज़ का पता लगाने जंगल की और निकल पड़ी।
पड़ो की झुरमुट से निकलकर अब वो एक खुले स्थान पर आ गई।

इधर अब चंद्रमा धीरे-धीरे आसमान से अपनी चाँदनी छितराने लगा ।चिली को  एक बार फिर वही आवाज़ सुनाई दी ।
उसने अपने कदम तेजी से उस आवाज़ की तरफ़ बढ़ा दिये।

पर तभी, अचानक उसे महसूस हुआ कि शायद कोई उसका पीछा कर रहा हैं।अब चुकि:  चिली उस जंगल में अकेली थी। उसे इस नई मुसीबत से जबरदस्त घबराहट होने लगी। 
पर  कुछ दूर चलने के बाद जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे वहाँ कोई नहीं दिखाई दिया।इससे उसका डर थोड़ा कम हो गया।

वह लगातार कई देर से चल रही थी। और अब उसे कुछ-कुछ थकावट सी महसूस होने लगी।

        "क्यों ना मैं यहाँ थोड़ा विश्राम कर लूँ ?
चिली ने उबासी लेते हुए कहा। और वहीं पास पड़े ,एक बड़े से पत्थर पर बैठ गई । और  एक कविता गाते -गाते उसे नींद की झपकी आ गई ।

पर चिली की इस निंद्रा में , कुछ ही समय बाद विघ्न पड़ गया ।दरअसल उसे जंगल के मच्छरों ने बुरी तरह  से
परेशान कर दिया।

"बाप रे ! इतने सारे मच्छर "  मुझे लगता हैं कि यह मच्छर आज मुझे बीमार करके ही छोड़ेंगे।

चिली ने आज ही स्कूल में मलेरिया रोग का अध्याय पढ़ा था। और उसे यह सब भली प्रकार विदित है कि मादा एनाफिलीज  मच्छर के काटने से ही मलेरिया होता हैं।
अब चुकि: चिली की नींद उड़ चुकी थी अत:उसने एक बार फिर आगे बढ़ने का निश्चय किया । और उस सुनसान जंगल से , अपने आप को  सुरक्षित बाहर निकालने के लिए चल पड़ी।

अभी वो पाँच मिनट भी ठीक से नहीं चल पायी होगी, कि उसे दूर चट्टान की तरफ़ से कुछ चमकदार वस्तु दिखाई दी।जो कुछ हल्की-हल्की सी, हिलती हुई प्रतीत हो रही थी।

"अरे ! इस अंधेरे में यह क्या चीज़ है, जो इस प्रकार चमक रही हैं ?
      चिली इस प्रश्न से चितिंत हो उठी।
पर उसकी यह चिंता, तब और डर में बदल गई। जब उसे वो चमकदार वस्तु, अपनी और आती प्रतीत हुई।
चिली डर के मारे एक पेड़ की ओट में छिप गई।

पर चंद लम्हों में ही वो चमकदार वस्तु उसकी नज़रों के सामने आ गई।जिसे देखकर एक बारगी तो वो सचमुच ही डर गई।पर अगले ही क्षण उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।
      दरअसल यह एक नन्हा सा हिरन का बच्चा था, जो पास ही बह रही नदी में पानी पीने जा रहा था।

"ओह ! अब मेरी समझ में आया कि वो चमकदार वस्तु कोई और नहीं इसी नन्हे हिरन की आँखें थी।जो चंद्रमा की इस शीतल चाँदनी में किसी जगमगाते हीरे सी प्रतीत हो रही थी" चिली नें दीर्घ श्वास छोड़ते हुए स्वयं से कहा ।
              चलो इस जंगल में कोई तो ढंग का साथी मिला। चिली चुकि:अब तक अकेली ऊब सी गई थी । अतः उसने हिरन के बच्चे के साथ अपना मन बहला चाहा ।
उसने जैसे ही नन्हे हिरन को पकड़ने के लिए ,अपना हाथ आगे बढ़ाया ,वो बच्चा कुलांचे मारता हुआ उस निर्जन वन में अंतर्ध्यान हो गया।और चिली की यह मनोकामना अधूरी सी रह गयी। ठीक वैसे ही जैसे खिलौने के टूट जाने पर किसी बच्चे की रह जाती हैं।
बहरहाल अब चिली का डर ग़ायब हो चुका था और उसकी जगह अब उत्साह ने ले ली थी।

अब वो पुन: उस रहस्यमयी आवाज़ का पता लगाने आगे चल पड़ी।।

मित्रों  यह था रहस्य और रोमांच से भरपूर इस उपन्यास का प्रथम अंक ।
साथियों  रहस्य  और रोमांच से भरी ये यात्रा जारी रहेगी , बस बने रहिए मेरे साथ इस रोचक सफ़र में । यह अंक आपको कैसा लगा  बताना न भूलें। मुझे आपकी स्नेहिल  प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा मिलते हैं फिर से अगले अंक में तब तक के लिए "वंदेमातरम्"

आपका प्यारा साथी:-अनमोल तिवारी 
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