Friday, 19 June 2015

मेवाड़ के वीर

मेवाड़ के वीर
मेवाड़ के उन वीरों की
हस्ती अभी भी बाकी हैं।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
मान बढ़ाया जग में जिसने
उन वीरों की क्या बात करूँ।
क्या कुंभा क्या राणा सांगा
चेतक की मै साख भरूँ।।
भूखे प्यासे फिरे वनों में
वो वीर बड़े अभिमानी थे।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
जौहर की लपटों से खेली
पद्मिनी सी नार यहाँ।
आन के ख़ातिर लड़े समर में
सिसोदा सरदार जहाँ।।
क्या जयमल क्या पत्ता गौरा
बादल की जवानी हैं।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी है।।
रण ख़ातिर सिर काट दे दियो
उस वीर मही क्षत्राणी नें।
धर पुरुष को रूप समर में
रण कियो कर्मा रानी ने।।
अमर हो गये अमरसिहँ भी
इस दानी भामाशाह की माटी में।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
पन्ना का तो त्याग देखकर
कर्णराज भी शरमाया होगा।
मीरा की भक्ति के आगे
राधा का मन भी घबराया होगा।।
कैसे भूला सकता हूँ मैं
कुँवरी कृष्णा भी अभिमानी हैं।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
चित्तौड़ी बुर्जा दिवेर समर
हल्दीघाटी या देसूरी।
उदियापुर"अनमोल"रत्न
चावंड भौम या कोल्यारी।।
गोगुन्दा से मांडलगढ़ तक
लम्बी एक कहानी हैं।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
Anmol Tiwari at 04:17

No comments:

Post a Comment