Monday 2 May 2016

उपन्यास :-गुफा वाला ख़ज़ाना अंक -1

…………………………………………………………
                  ।।श्री।।
ऊँ वक्रतुण्डं महाकाय,
              सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्न कुरु मे देवे
              सर्व कार्यषु सर्वदा।।
    
        ***गुफा वाला ख़ज़ाना****

लेखक की कलम से………………
    प्रस्तुत बाल उपन्यास" गुफा वाला ख़ज़ाना " एक रोचकीय , एवं रोमांचकारी उपन्यास हैं।
यह एक  14 वर्षीय मासूम लड़की "चिली"की कहानी हैं। जो अचानक आयी एक आवाज़ को सुनकर, विस्मित सी हो जाती है। तथा आवाज़ किसकी हैं।यह पता लगाने के लिए, जंगल में पहुँच जाती हैं।

वहाँ उसे एक औरत का ,मृत शरीर दिखाई पड़ता हैं ।सहमी सी चिली नज़दीक जाकर देखती हैं।उसके हाथ में एक नक्शा , तथा पत्र था । जिसमें एक खजाने का रहस्य था।

आगे क्या होता हैं ?, तथा चिली किन -किन मुसीबतों का सामना करते हुए वहाँ पहुँचती हैं? क्या उसे ख़ज़ाना मिलता हैं ?
इन प्रश्नों के उत्तर तो आप उपन्यास पढ़कर ही जान पाएँगे।
पर इतना तो स्पष्ट हैं , कि यह उपन्यास एक आश्चर्यजनक एवं साहसिक यात्रा का अनुपम उदाहरण हैं।

मेरे  इस उपन्यास में बस यही उद्देश्य निहित हैं कि बाल मन इस उपन्यास से साहस की प्रेरणा पाकर निश्चय ही उत्तम सोच विकसित कर सकेंगे 
             मैं अपने इस उद्देश्य में कितना सफल हो पाया , यह तो आप प्रबुद्ध पाठक ही समझ  पाएँगे।फिर भी भूलवश और वर्तनीगत  हुई त्रुटियों  के लिए में सादर क्षमाप्रार्थी हूँ।

""इस  उपन्यास  की विषयवस्तु पूर्णतया काल्पनिक है । और इसका किसी भी घटना से कोई संबंध नहीं हैं। फिर भी अगर  संबंध पाया जाता हैं, तो यह संयोग मात्र ही माना जाएगा""।

आप पाठकों के सुझावों का सहृदय  स्वागत हैं।आप श्री इसे ज़रूर पसंद करेंगे , इसी आशा में 
आपका अनुज
        •• अनमोल तिवारी"कान्हा"••
---------------------------------------------------------------------------           गुफा वाला ख़ज़ाना 
                 (अंक:-1) 
साँय का समय, हवा अपने मंद प्रवाह से उस शांत वातावरण  में अनुगमन कर रही थी।जहाँ नन्ही सी "चिली " रोज़ की भाँति अपनी सहेलियों के साथ , गाँव में पीपल के वृक्ष तले, अपने स्वर्णिम बचपन के सावन में खेलेने में व्यस्त  हैं।

"चिली" को अभी तक यह डर  नहीं  हैं कि , उसे फिर से विद्यालय में गृहकार्य पुरा ना होने पर डाँट खानी पड़ सकती हैं। जैसी कि कल उसकी प्यारी सखी सुरीली को पड़ी थी।
सुरीली चिली की सबसे प्यारी सखी  हैं ।और दोनों एक ही कक्षा में  पढ़ती हैं।
चिली अपनी बाल सखियों के साथ, अभी तक खेलने में व्यस्त हैं।अब जबकि  अस्ताचलगामी  सूर्य का प्रकाश  धीरे -धीरे विलुप्त होने की कगार पर हैं।चिली की सब सहेलियाँ एक - एक करके वहाँ से खिसकने लगी ।
चिली और सुरीली ने जब देखा कि उनकी सब सखियाँ जा चुकी हैं ,तो उन्होंने भी  घर चलने का निश्चय किया और शैने:-शैने: अपने  क़दमों को बढाती हुई दोनों पुराने शिव मंदिर तक आ पहुँची।

अभी वो कुछ कदम और आगे चली ही  होंगी कि  अचानक उनकी एकाग्रता भंग हुई।जब उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। जो पास के ही जंगल से आ रही थी।जहाँ वो दोनों कभी-कभी अपने पिताजी के साथ जाया करती थीं।और लकड़ियों के  गट्ठर  लाया करती थीं।

चिली जिसकी उम्र अभी चौदह बरस ही होगी साँवला सलौना रूप , नटखट हँसी से लिप्त मासूम चेहरा, बिल्कुल अपनी माँ से मिलती शक्ल जो वीरता और साहस की कहानियाँ अक्सर चिली को सुनाया करती थी।

"चिली यह आवाज़ किसकी हो सकती  ? सुरीली ने क्षण भर के लिए  गंभीर हो लम्बी सी साँस छोड़ते हुए पूँछा "

"मुझे लगता है यह बेचार किसी जंगली जानवर की आवाज़ हैं। जो शायद किसी शिकारी के चंगुल में फँस गया हैं"
चिली ने प्रत्युत्तर में कहा और सुरीली की और देखने लग गई।

अब तक दोनों चलते-चलते सुरीली के घर तक पहुँच गई । चिली सुरीली से विदा हो , अपने घर की तरफ़ बढ़ने लगी कि अचानक उसे वो  आवाज़ फिर से सुनाई दी। जो उसने पहले सुनी थी।
चिली ने जब दोबारा उस आवाज़ को सुना, तो उसने निश्चय किया कि ,वो इस आवाज़ का पता लगाएगी।और उसने अपने कदम वापस जंगल की तरफ़ जाने रास्ते की और मोड़ लिए।

अपने गाँव से बाहर निकलकर चिली उस रहस्यमयी आवाज़ का पता लगाने जंगल की और निकल पड़ी।
पड़ो की झुरमुट से निकलकर अब वो एक खुले स्थान पर आ गई।

इधर अब चंद्रमा धीरे-धीरे आसमान से अपनी चाँदनी छितराने लगा ।चिली को  एक बार फिर वही आवाज़ सुनाई दी ।
उसने अपने कदम तेजी से उस आवाज़ की तरफ़ बढ़ा दिये।

पर तभी, अचानक उसे महसूस हुआ कि शायद कोई उसका पीछा कर रहा हैं।अब चुकि:  चिली उस जंगल में अकेली थी। उसे इस नई मुसीबत से जबरदस्त घबराहट होने लगी। 
पर  कुछ दूर चलने के बाद जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे वहाँ कोई नहीं दिखाई दिया।इससे उसका डर थोड़ा कम हो गया।

वह लगातार कई देर से चल रही थी। और अब उसे कुछ-कुछ थकावट सी महसूस होने लगी।

        "क्यों ना मैं यहाँ थोड़ा विश्राम कर लूँ ?
चिली ने उबासी लेते हुए कहा। और वहीं पास पड़े ,एक बड़े से पत्थर पर बैठ गई । और  एक कविता गाते -गाते उसे नींद की झपकी आ गई ।

पर चिली की इस निंद्रा में , कुछ ही समय बाद विघ्न पड़ गया ।दरअसल उसे जंगल के मच्छरों ने बुरी तरह  से
परेशान कर दिया।

"बाप रे ! इतने सारे मच्छर "  मुझे लगता हैं कि यह मच्छर आज मुझे बीमार करके ही छोड़ेंगे।

चिली ने आज ही स्कूल में मलेरिया रोग का अध्याय पढ़ा था। और उसे यह सब भली प्रकार विदित है कि मादा एनाफिलीज  मच्छर के काटने से ही मलेरिया होता हैं।
अब चुकि: चिली की नींद उड़ चुकी थी अत:उसने एक बार फिर आगे बढ़ने का निश्चय किया । और उस सुनसान जंगल से , अपने आप को  सुरक्षित बाहर निकालने के लिए चल पड़ी।

अभी वो पाँच मिनट भी ठीक से नहीं चल पायी होगी, कि उसे दूर चट्टान की तरफ़ से कुछ चमकदार वस्तु दिखाई दी।जो कुछ हल्की-हल्की सी, हिलती हुई प्रतीत हो रही थी।

"अरे ! इस अंधेरे में यह क्या चीज़ है, जो इस प्रकार चमक रही हैं ?
      चिली इस प्रश्न से चितिंत हो उठी।
पर उसकी यह चिंता, तब और डर में बदल गई। जब उसे वो चमकदार वस्तु, अपनी और आती प्रतीत हुई।
चिली डर के मारे एक पेड़ की ओट में छिप गई।

पर चंद लम्हों में ही वो चमकदार वस्तु उसकी नज़रों के सामने आ गई।जिसे देखकर एक बारगी तो वो सचमुच ही डर गई।पर अगले ही क्षण उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।
      दरअसल यह एक नन्हा सा हिरन का बच्चा था, जो पास ही बह रही नदी में पानी पीने जा रहा था।

"ओह ! अब मेरी समझ में आया कि वो चमकदार वस्तु कोई और नहीं इसी नन्हे हिरन की आँखें थी।जो चंद्रमा की इस शीतल चाँदनी में किसी जगमगाते हीरे सी प्रतीत हो रही थी" चिली नें दीर्घ श्वास छोड़ते हुए स्वयं से कहा ।
              चलो इस जंगल में कोई तो ढंग का साथी मिला। चिली चुकि:अब तक अकेली ऊब सी गई थी । अतः उसने हिरन के बच्चे के साथ अपना मन बहला चाहा ।
उसने जैसे ही नन्हे हिरन को पकड़ने के लिए ,अपना हाथ आगे बढ़ाया ,वो बच्चा कुलांचे मारता हुआ उस निर्जन वन में अंतर्ध्यान हो गया।और चिली की यह मनोकामना अधूरी सी रह गयी। ठीक वैसे ही जैसे खिलौने के टूट जाने पर किसी बच्चे की रह जाती हैं।
बहरहाल अब चिली का डर ग़ायब हो चुका था और उसकी जगह अब उत्साह ने ले ली थी।

अब वो पुन: उस रहस्यमयी आवाज़ का पता लगाने आगे चल पड़ी।।

मित्रों  यह था रहस्य और रोमांच से भरपूर इस उपन्यास का प्रथम अंक ।
साथियों  रहस्य  और रोमांच से भरी ये यात्रा जारी रहेगी , बस बने रहिए मेरे साथ इस रोचक सफ़र में । यह अंक आपको कैसा लगा  बताना न भूलें। मुझे आपकी स्नेहिल  प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा मिलते हैं फिर से अगले अंक में तब तक के लिए "वंदेमातरम्"

आपका प्यारा साथी:-अनमोल तिवारी 
"कान्हा"
गाँव -कपासन जिला ,चित्तौडगढ (राज)
संपर्क :-9694231040
                   &
           8955095189
ई मेल :-Anmoltiwari38@gmail.com

________________________

_________________________________

No comments:

Post a Comment