Sunday 21 June 2015

कलुषित वृक्ष


नाम:- श्रीअनमोल तिवारी"कान्हा"
पिता:-श्री भँवर लाल जी तिवारी
माता:-श्रीमती नर्बदा देवी
पता:-पुराना राशमी रोड पायक 
        मोहल्ला वार्ड न•17 कपासन
तहसील:-कपासन
जिला:-चित्तौड़गढ़
राज्य:-राजस्थान
पिन कोड:-312202
सम्पर्क सूत्र:-9694231040 &
                   8955095189
साहित्य विधा:-गीत ,गजल,कविता,
प्रकाशन:-शब्द प्रवाह , वंदेमातरम 
             एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में
सम्मान:-शारदा साहित्य सम्मान,
             अनहद विशिष्ट काव्य सम्मान
           
          ****रचना*****
     (1) कलुषित वृक्ष

आज भी उठ रहा हैं 
काला धुआँ
सरहद के उस पार से
जिसकी विषैली बू
समा रही हैं सीनों में।
और करती है हरा
उस जख्म को
जो वर्षों पहले मिला था
बँटवारे के दिनों में।।
बटँवारा  जिसने 
  बहुत कुछ खोया।
और गुमशुदा घाटियों में
कलुषित बीज बोया।।
आज वो बीज
बन चुका हैं वृक्ष विशाल
जिसकी हरेक शाखाओं पर
है आतंक के काँटे।
और हो रहे हैं विकसित
बारूदी गंध युक्त पुष्प।।
   जिसकी हर टहनी पर
लटके हैं कई जहरीले साँप।
जो आतुर हैं निगलने को
मानवीय सँवेदनाएँ 
और करते है जहरीली फुकाँर।।
अजीब है खासियत 
  इस रक्त बीजी वृक्ष की
इसे चाहो जितना काटो
फिर पनप जाता हैं।
और करता है एक 
   कलुषित अट्ठाहस।।
और उजागर कर देता हैं
मानवीय दुर्बलता को।।
मगर होता है ,अंत हरेक का
यहीं है सृष्टि का नियम।
बस रण चंडी बन
   करे सार्थक प्रयत्न हम।।

Friday 19 June 2015

मेवाड़ के वीर

मेवाड़ के वीर
मेवाड़ के उन वीरों की
हस्ती अभी भी बाकी हैं।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
मान बढ़ाया जग में जिसने
उन वीरों की क्या बात करूँ।
क्या कुंभा क्या राणा सांगा
चेतक की मै साख भरूँ।।
भूखे प्यासे फिरे वनों में
वो वीर बड़े अभिमानी थे।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
जौहर की लपटों से खेली
पद्मिनी सी नार यहाँ।
आन के ख़ातिर लड़े समर में
सिसोदा सरदार जहाँ।।
क्या जयमल क्या पत्ता गौरा
बादल की जवानी हैं।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी है।।
रण ख़ातिर सिर काट दे दियो
उस वीर मही क्षत्राणी नें।
धर पुरुष को रूप समर में
रण कियो कर्मा रानी ने।।
अमर हो गये अमरसिहँ भी
इस दानी भामाशाह की माटी में।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
पन्ना का तो त्याग देखकर
कर्णराज भी शरमाया होगा।
मीरा की भक्ति के आगे
राधा का मन भी घबराया होगा।।
कैसे भूला सकता हूँ मैं
कुँवरी कृष्णा भी अभिमानी हैं।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
चित्तौड़ी बुर्जा दिवेर समर
हल्दीघाटी या देसूरी।
उदियापुर"अनमोल"रत्न
चावंड भौम या कोल्यारी।।
गोगुन्दा से मांडलगढ़ तक
लम्बी एक कहानी हैं।
फिर से जनमेगा प्रताप
ये उम्मीद अभी भी बाकी हैं।।
Anmol Tiwari at 04:17